मैं तुम्हें मर्यादापुरुषोत्तम मानती,
यदि तुम स्त्री को पति के चरणों मे न रख कर पुरुष के समान ही बराबरी देते…
मैं तुम्हें मर्यादापुरुषोत्तम मानती,
यदि तुम वेदों का पाठ कर रहे निचली जाति के शम्बूक की हत्या न करते…
मैं तुम्हें मर्यादापुरुषोत्तम मानती ,
यदि तुम छल से बाली के प्राण न लेते…
मैं तुम्हें मर्यादापुरुषोत्तम मानती,
यदि तुम जानकी की पवित्रता को अग्निपरीक्षा से न आँकते…या खुद भी अग्निपरीक्षा देते…क्योंकि, स्त्री से अलग तो तुम भी रहे थे…
मैं तुम्हें मर्यादापुरुषोत्तम मानती,
यदि तुम अपनी गर्भवती पत्नी सीता को दुनिया के कहने पर त्यागते नहीं…
हे राम….यदि तुम जीवित होते तो तुमसे अवश्य पूछती….
कि, तुमने ईश्वर होकर भी….ये भेदभाव क्यों किया???
क्यों किया….???
हे राम…मैं तुमसे पूछना चाहती हूँ, कि ईश्वर होकर भी तुमने अनादि काल से अब तक चले आ रहे अत्याचारों को क्यों खत्म नहीं किया???
क्यों इन विभेदों को मिटाया नहीं तुमने..
ईश्वर होकर भी तुम इन विभेदों के वाहक क्यों बने…..???
क्यों बने???
—रोशनी बंजारे “चित्रा”