महर्षि दधीचि त्याग और तपस्या के साकार रूप मे पुजे जाने वाले ॠषि थे। ऋषि अथर्वा और माता शांति के पुत्र जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव की भक्ति में व्यतीत किया था। वे एक ख्यातिप्राप्त महर्षि, वेद-शास्त्रों के ज्ञाता, परोपकारी जिनके जीवन में अहंकार के लिए लेशमात्र भी जगह नहीं थी। सदा दूसरों का हित करने के लिए तत्पर रहने वाले ॠषि जहां वे रहते ,वहा के मनुष्य ही नही, वरन पशु-पक्षी भी उनके व्यवहार से प्रसन्न थे। उनके तप मे इतना तेज था कि एक बार वे कठोर तपस्या कर रहे थे तो उनके तप के तेज से तीनों लोक आलोकित हो गए, लेकिन सिंहासन के खो जाने के भय मात्र से इन्द्र के चेहरे का तेज जाता रहा, क्योंकि उन्हे लगा कि महर्षि उनसे इंद्रासन छीनना चाहते हैं। इसलिए उन्होने तपस्या भंग करने की कोशिश की ,और वे असफल रहे तो उनकी हत्या के इरादे से सेना सहित वहां पहुंच गए। लेकिन इंद्र के अस्त्र-शस्त्र महर्षि की तप के अभेद्य कवच को भेद भी न सके और वे शांत भाव से समाधिस्थ बैठे रहे। हारकर इन्द्र लौट गए। इस घटना के बहुत समय बाद वृत्रासुर ने देवलोक पर विजय प्राप्त कर इंद्र को स्वर्ग से पलायन के लिए मजबूर कर दिया। उस समय इंद्र के मार्गदर्शन के लिए गुरू बृहस्पति भी नही थे। अब ऐसी विषम परिस्थिति मे पराजित इन्द्र और देवता मारे-मारे फिरने लगे। तब प्रजापिता ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि वृत्रासुर का अंत महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने अस्त्र से ही संभव है। इसलिए उनके पास जाकर उनकी अस्थियां मांगो। इससे इन्द्र संकोच मे आ गए । वे सोचने लगे कि जिनकी हत्या का प्रयास किया ,वे आज उनकी सहायता के लिए अपनी अस्थिया क्यो देंगे । लेकिन कोई उपाय न होने पर वे महर्षि के पास पहुंचे और झिझकते हुए बोले- महात्मन्, तीनों लोकों के मंगल हेतु हमें आपकी अस्थियां चाहिए।
महर्षि विनम्रता से बोले- देवेंद्र, लोकहित के लिए मैं तुम्हें अपना शरीर देता हूं। इन्द्र आश्चर्य से उनकी ओर देख ही रहे थे कि महर्षि ने योग विद्या से अपना शरीर त्याग दिया। बाद में उनकी अस्थियों से बने वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर को मारकर तीनों लोकों को सुखी किया।
लोकहित के लिए महर्षि दधीचि ने तो अपनी अस्थियां तक दान कर दी थीं, क्योंकि वे जानते थे कि शरीर नश्वर है और एक दिन इसे मिट्टी में मिल जाना है। वैसे कितनी कटु हकीकत है कि साथ मे कुछ जाता नही है फिर भी हम लोभ मोह माया के फेर मे जाने कितने अपराध कर बैठते है,अगर दधीचि के त्याग का एक अंश भी हम साकार कर ले तो शायद मानवीय जगत मे कोई समस्या ही न हो। दधीचि वास्तव मे मानव कल्याण के सच्चे प्रतिनिधि के रूप मे हमेशा स्मरणीय रहेंगे ।
-डॉ.भावना शर्मा
झुंझुनू,राजस्थान ।
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